Premanand Ji Maharaj Satsang: जीवन की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि हम किन चीजों को थामें और किन्हें छोड़ें। प्रियजनों, सफलता, धन, मान-सम्मान या जीवन के सपनों के प्रति हमारी आसक्ति हमें बेचैन कर सकती है। वहीं, विरक्ति को लोग अक्सर पलायन समझ लेते हैं। संत प्रेमानंद महाराज जी का कहना है कि विरक्ति का अर्थ सब कुछ छोड़ देना नहीं है, बल्कि ईश्वर पर विश्वास रखते हुए अपने मन को मोह और बंधनों से मुक्त करना है। यदि इस गूढ़ सत्य को समझ लिया जाए, तो जीवन की हर उलझन को शांति में बदला जा सकता है।
आसक्ति और विभक्ति का संतुलन प्रेमानंद जी का दृष्टिकोण
प्रेमानंद जी का कहना है कि जितनी अधिक आसक्ति किसी चीज को पाने में होगी, वह चीज उतनी ही दूर होती जाएगी। और जिसे हम त्याग देंगे, वह अपने आप पास आएगी। यही संसार का नियम है। महाराज ने कहा कि हम देखते हैं कि प्रियजन, जिन्हें हमने दिल से चाहा, अक्सर दूर चले जाते हैं, या लक्ष्य, जिसे पाने की कोशिश की, उतना ही कठिन होता जाता है। इसका कारण मन की अत्यधिक आसक्ति है। विरक्ति का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ छोड़कर संन्यास ले लिया जाए। बल्कि इसका अर्थ है कि हमें प्रयास करना चाहिए और परिणाम को ईश्वर के हाथ में छोड़ देना चाहिए। जैसे किसान बीज बोकर रोज उसे नहीं देखता, बल्कि ईश्वर पर भरोसा कर उसके अंकुरित होने का इंतजार करता है।
त्याग नहीं, विश्वास की आवश्यकता विरक्ति की सही समझ
लोग अक्सर सोचते हैं कि विरक्ति का मतलब सब कुछ त्याग देना है, लेकिन संत प्रेमानंद जी समझाते हैं कि असल में विरक्ति की भावना विश्वास से आती है। जो व्यक्ति ईश्वर पर भरोसा कर सकता है, वही सही मायने में विरक्त के सुख का अनुभव कर सकता है। जब आप अपनी इच्छाओं को प्रभु को समर्पित कर देते हैं, तब मन शांत हो जाता है। महाराज जी का कहना है कि जो आपका है, उसे कोई छीन नहीं सकता और जो आपका नहीं है, वह आपको मिल नहीं सकता। इसलिए ईश्वर पर समर्पण और जीवन की उलझनों से मुक्त होने का सबसे सरल मार्ग है।
ईश्वर के प्रति आभार और प्रार्थना का महत्व आभार और प्रार्थना का जादू
जीवन की उलझनों से मुक्त होने का सबसे सरल मार्ग आभार और प्रार्थना है। महाराज जी कहते हैं, 'सुबह उठकर ईश्वर को धन्यवाद दें कि उन्होंने आपको नया दिन जीने का अवसर दिया और संध्या में फिर से आभार व्यक्त करें कि आपकी कृपा से सारे काम उनके अनुसार बने।' विरक्ति का फल तभी पूर्ण होता है जब उसके साथ विश्वास जुड़ा हो। जो व्यक्ति ईश्वर की कृपा में भरोसा रखता है, वह भाग्य से नहीं बल्कि प्रभु की अनुकंपा से जीता है।
सकारात्मक सोच और ब्रह्मांड की प्रतिक्रिया हमारी प्रार्थना का प्रभाव
हमारी प्रार्थना और विचार पूरे ब्रह्मांड में तरंगों की तरह जाते हैं और वही हमें लौटकर मिलते हैं। यदि हम नकारात्मक सोचेंगे, तो नकारात्मकता ही लौटेगी। यदि हर सुबह उठकर ईश्वर का आभार प्रकट करेंगे, तो यकीन मानिए आपका जीवन पूरी तरह बदल जाएगा। धीरे-धीरे घटनाएं आपके अनुकूल होने लगेंगी और आप स्वयं चकित रह जाएंगे कि यह सब कैसे हो रहा है।
कमल की तरह निर्मल रहने की सीख संसार की माया में रहते हुए
प्रेमानंद जी समझाते हैं कि जैसे कमल का फूल कीचड़ और पानी में रहकर भी खिलता है, वैसे ही हमें संसार की माया में रहते हुए भी अपने मन को शुद्ध, शांत और सुंदर बनाए रखना है। यह तभी संभव है जब हम अपना सब कुछ प्रभु चरणों में अर्पित कर दें।
नाम जप और साधना की शक्ति मन को शांत रखने का उपाय
मन को शांत रखने और सही दिशा देने के लिए नाम जप सबसे सरल साधन है। निरंतर ईश्वर का स्मरण और नाम-जप करने से मन बंधनों से मुक्त होता है और आत्मा में गहरी शांति का अनुभव होता है। विरक्ति का अर्थ पलायन नहीं, बल्कि ईश्वर पर विश्वास के साथ समर्पण है। आशक्ति मन को उलझाती है, जबकि विरक्ति जीवन को मुक्त करती है। संत प्रेमानंद जी का संदेश हमें सिखाता है कि शांति बाहर नहीं, बल्कि हमारे मन के भीतर है।
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